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कविता

चोर

बोधिसत्व


मैं दूसरों की बनाई दुनिया में रहा
सड़के जिन पर मैं चला
चप्पलें जो मैंने पहनीं
रोटियाँ जो मैंने खाईं
सब थीं दूसरों की बनाईं ।

झंडे जो मैंने उठाए
नारे जो मैंने लगाए
गीत जो मैंने गाए
सब थे दूसरों के बनाए।

किताबें जौ मैंने पढ़ीं
थी सब दूसरों की गढ़ी।

मैं तो बस चोर की तरह
चुराता रहा दूसरों का किया

मैंने किया क्या
जीवन जिया क्या ?


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